हजारों सरकारी वाहनों का न फिटनेस न प्रदूषण जांच
केंद्रीय मोटरयान अधिनियम की सख्त धाराओं के बीच लोग अपने वाहनों की फिटनेस और प्रदूषण जांच के लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़े होने को मजबूर हैं। लेकिन ताज्जुब है कि आम जनता पर लागू होने वाला मोटरयान कानून सरकार ही नहीं मानती। पिछले 19 सालों से प्रदेश में हजारों सरकारी वाहन बगैर फिटनेस और प्रदूषण जांच के फर्राटे से दौड़ रहे हैं। इतना ही नहीं सरकारी वाहन चालकों का ये शिकवा है कि जो वाहन उन्हें चलाने के लिए दिए गए हैं, उनका इंश्योरेंस तक नहीं कराया जा रहा है। अपने ही बनाए कानून को सरकार आखिर क्यों नहीं मानती? राजकीय चालक संघ के प्रदेश महामंत्री संदीप कुमार मौर्य कहते हैं कि संघ पिछले कई वर्षों से सरकारी वाहनों के फिटनेस, प्रदूषण जांच और वाहन चालक के इंश्योरेंस की मांग उठाता आ रहा है। लेकिन किसी भी सरकार ने इसका संज्ञान नहीं लिया। वर्ष 2009 में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष हरबंस कपूर को भी संघ की ओर ज्ञापन दिया गया था। वर्ष 2013 में जब ये मसला शासन स्तर पर उठाया गया। तब तत्कालीन परिवहन सचिव ने साफ कह दिया था कि सरकारी वाहनों पर अधिनियम लागू नहीं होता। मौर्य की मानें तो केवल उत्तराखंड में ही नहीं पूरे देश में सरकारी वाहनों को लेकर यही स्थिति है। सचिवालय में 150 से 200 वाहनों का बेड़ा है। सरकारी विभागों में भी संचालित वाहनों की संख्या छह से सात हजार के आसपास है। इनमें से शायद ही किसी वाहन ने फिटनेस और प्रदूषण जांच कराई हो।