जानें वृंदा कैसे बनी तुलसी, और क्यों हुआ तुलसी शालीग्राम का विवाह
आज के दिन भूल से भी ना छुए तुलसी के पत्ते

आज देवउठनी एकादशी है… जोकि हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं… भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय हैं… तुलसी के बिना भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है… और ये भी कहा जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग नहीं करतें… ऐसा माना जाता है कि रविवार, मंगलवार और एकादशी तिथि के दिन तुलसी को छूना, इसके पत्ते तोड़ना और इसमें जल अर्पित करना काफी अशुभ होता है… लेकिन ऐसा क्यों होता है इसे जानने के लिए आइए पढ़ते है कुछ कारणों को Bharat A TO Z News के माध्यम से….

तिथि को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है… इसे देवोत्थान एकादशी, हरि प्रबोधनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है… इस साल देवउठनी एकादशी आज 4 नवंबर 2022 को है… इस दिन भगवान विष्णु 4 महीने की योग निद्रा से जागते हैं… देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है और उन्हें शंख, घंटी आदि बजाकर जगाया जाता है… देवउठनी एकादशी के अगले दिन तुलसी विवाह किया जाता है और इसके बाद से ही सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं…
पौराणिक कथा के अनुसार जालंधर नाम का एक बहुत शक्तिशाली राक्षस था… देवी-देवता उसके आतंक से बहुत परेशान रहते थे… उसकी पत्नी वृंदा पतिव्रता स्त्री थी उसकी पूजा पाठ के प्रभाव से जालंधर को युद्ध में कोई हरा नहीं पाता था… वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थी… वृंदा की भक्ति के कारण जालंधर हर लड़ाई में हमेशा विजय होता… उसका उपद्रव बहुत बढ़ चुका था… एक दिन उसने स्वर्गलोक पर हमला कर दिया… सभी देवता परेशान होकर श्रीहरि की शरण में गए और इसका समाधान निकालने का आग्रह किया… भगवान विष्णु जानते थे कि वृंदा की भक्ति भंग किए बिना जालंधर को परास्त करना असंभव है… श्रीहरि ने जालंधर का रूप धारण कर लिया और वृंदा का पतिव्रता धर्म टूट गया… उस वक्त जालंधर देवताओं के साथ युद्ध कर रहा था… वृंदा का पतिव्रता धर्म नष्ट होते ही जालंधर की सारी शक्तियां खत्म हो गईं और वह युद्ध में मारा गया… वृंदा को बाद में भगवान विष्णु के इस छल का भान हुआ तो वह क्रोधित हो उठी और फिर श्रीहरि को श्राप दे दिया…
वृंदा का सतीत्व भंग होने पर उसने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस तरह आपने छल से मुझे पति वियोग का कष्ट दिया है उसी तरह आपकी पत्नी का भी छलपूर्वक हरण होगा… साथ ही आप पत्थर के हो जाओगे… यही पत्थर शालीग्राम कहलाया… कहा जाता है कि वृंदा के श्राप के चलते श्री विष्णु ने अयोध्या में दशरथ पुत्र श्री राम के रूप में जन्म लिया और बाद में उन्हें सीता वियोग का भी कष्ट सहना पड़ा…
वृंदा पति की मृत्यु को सहन नहीं कर पाई और सती हो गई… कहते हैं कि वृंदा की राख से एक पौधा निकला जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी का नाम दिया… श्रीहरि ने घोषणा की कि तुलसी के बिना मैं प्रसाद ग्रहण नहीं करूंगा… मेरा विवाह शालीग्राम रूप से तुलसी के साथ होगा… कालांतर में इस तिथि को लोग तुलसी विवाह के नाम से जानेंगे… कहते हैं कि जो शालीग्राम और तुलसी विवाह कराता है उसका वैवाहिक जीवन खुशियों से भर जाता है… साथ ही उसे कन्यादान करने के समान पुण्य मिलता है…




