जुबां छुपाती है बेटों की करतूत, आंखें बयां करती हैं दर्द
जुबां छुपाती है बेटों की करतूत, आंखें बयां करती हैं दर्द

जुबां छुपाती है बेटों की करतूत, आंखें बयां करती हैं दर्द
मैं अपने बेटों का नाम नहीं लूंगा, वरना वो बदनाम हो जाएंगे।
वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्ग बेटों का अहित होने की आशंका पर
पीड़ा से भर जाते हैं। बेटों ने घर से निकाल दिया, लेकिन काफी
कुरेदने पर भी उनका नाम नहीं लिया। वो कहते हैं कि
बच्चों ने बुरा किया लेकिन हैं तो वो अपने ही। मन का
दर्द आंखों से छलक पड़ता है।
जनपद श्रावस्ती के मुख्यालय भिनगा में सरकार द्वारा एक वृद्धाश्रम चलाया जा रहा है। जहां पर 73 (महिला-पुरूष) वृद्ध रहते हैं। इस वृद्धाश्रम को चलाने के पीछे सरकार की मंशा ऐसे वृद्धों का पालन-पोषण करने की थी जिनका अपना कोई परिवार न हो। लेकिन इसके उलट यहां परिवारों से निकाले और सताए गए वृद्ध अधिक मिल जाएंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि जिसने हमको जन्म दिया। पाल-पोश कर इस धरा पर खड़ा किया। हम उसे दो जून की रोटी तक मयस्सर नही करा सकते।