जलती चिताओं की कतार से शून्य हो रहा दिमाग, भगवान दोबारा न दिखाए ऐसा मंजर
जलती चिताओं की कतार से शून्य हो रहा दिमाग, भगवान दोबारा न दिखाए ऐसा मंजर

लखनऊ:जलती चिताओं की कतार से शून्य हो रहा दिमाग, भगवान दोबारा न दिखाए ऐसा मंजर,श्मशान घाट पर आम दिनों से ज्यादा भीड़ थी। पार्किंग फुल हो चुकी थी। गाड़ियां बाहर सड़क तक लगी थीं। श्मशान के अंदर जहां तक नजर जा रही थी, जलती चिताएं ही नजर आ रही थीं। पक्के प्लेटफॉर्म से लेकर सड़क, फुटपाथ व नदी किनारे तक चिताएं फूट फूटकर रोते लोग और अंतिम संस्कार की जद्दोजहद ही दिखाई दे रही थी।
रामकुमार ने बताया कि जब हम श्मशान घाट पहुंचे तो भारी भीड़ थी। शव को नीचे उतारा और लकड़ी खरीदने पहुंच गए। कुल तीन क्विंटल लकड़ी लगनी थी। विक्रेता ने 3000 रुपये मांगे, जो लिस्ट में तय रेट से ज्यादा था।दोस्त ने एतराज करते हुए बोर्ड पर लगे नंबर पर शिकायत करने की बात कही।
विक्रेता ने लकड़ी तौलवाई और खुद चिता तक पहुंचा दी। फिर उसने हमें इशारे से बुलाया और तय रेट पर ही लकड़ी दे दी। पक्के प्लेटफॉर्म के पास थोड़ी जगह खाली थी। वहां चिता लगवाने के लिए लकड़ी विक्रेता भी चल दिया। वहां पहुंचने वाली सड़क किनारे एक महिला, अपनी बेटी के साथ बैठी रो रही थी। एक शव उनके पास पड़ा था। जो लकड़ी विक्रेता वसूली में लगा था, वह महिला के पास गया और उसकी व्यथा पूछी। महिला के पास लकड़ी व शवदाह के लिए पैसे नहीं थे। जो पैसे थे वे एंबुलेंस से शव घाट तक पहुंचाने में ही खर्च हो गए !