
200 सालों से यहां महिलाएं नहीं रखती करवा चौथ का व्रत यहां की महिलाएं नहीं करती हैं सोलह सिंगार
यूपी के मथुरा जिले के कस्बा सुरीर में सैकड़ों वर्षों से चली आ रही रूढ़िवादी परंपरा आज भी कायम है।
इसे सती का श्राप कहे या बिलखती पत्नी की बद्दुआ यहां सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए
करवा चौथ और अघोई अष्टमी का व्रत नहीं रखती हैं। यदि इस परंपरा को किसी विवाहिता ने तोड़ने का प्रयास किया तो उसके साथ अनहोनी हो जाती है। इसी अनहोनी के डर से कस्बा सुरीर के मोहल्ला बघा में आज भी दर्जनों परिवार ऐसे हैं जिनके घर करवा चौथ का त्यौहार नहीं मनाया जाता है। और ना ही विवाहित महिलाएं सोलह सिंगार करती हैं बताया जाता है कि करीब दो सौ वर्ष पहले गांव रामनगला नौहझील का एक ब्राह्मण युवक ससुराल से अपनी पत्नी को लेकर घर लौट रहा था। सुरीर कस्बे से निकलने के दौरान वघा मुहल्ले में ठाकुर समाज के लोगों से भैंसा बुग्गी को लेकर विवाद हो गया। जिसमें इन लोगों के हाथों ब्राह्मण युवक की मौत हो गई थी।अपने सामने पति की मौत से कुपित मृतक की पत्नी इन लोगों को श्राप देते हुए सती हो गई थी। घटना के बाद मुहल्ले में मानो कहर आ गया था। कई जवान लोगों की मौत होने से महिलाएं विधवा होने लगीं शोक, डर और दहशत से इन लोगों के परिवार में कोहराम मचना शुरू हो गया। कुछ समझदार बुजर्ग लोगों ने इसे सती का श्राप मानते हुए क्षमा याचना करते हुए मुहल्ले में मंदिर बना कर सती की पूजा-अर्चना शुरू कर दी थी जिससे सती के कोप का असर तो कुछ थम सा गया लेकिन इनके परिवार में पति और पुत्रों की दीर्घायु को मनाए जाने वाले करवाचौथ एवं अहोई अष्टमी के त्यौहार पर सती ने बंदिश लगा दी। तभी से यह त्यौहार मनाना तो दूर इनके परिवार की महिलाएं पूरा साज-श्रंगार भी नहीं करती हैं। सदियों से चली आ रही इस सती के श्राप की कहानी को मोहल्ले के लोग सच मानते हैं। और मंदिर में सती की पूजा-अर्चना भी की जाती है। बताया जाता है कि पूजा अर्चना से सती का कोप मोहल्ले की महिलाओं पर कम हो गया है। लेकिन करवा चौथ और अघोई अष्टमी का त्योहार सुहागिन महिलाएं नहीं मनाती हैं। शादी होने के बाद अपने ससुराल आई नवविवाहिता को जब इस कहानी की जानकारी होती है। तो वह मायूस हो जाती हैं। और अपने पति की दीर्घायु के लिए रखा गया करवा चौथ का त्यौहार नहीं रख पाती हैं।