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क्या अमेरिका और रूस के बीच टकराव टालना अब मुमकिन नहीं है?

क्या अमेरिका और रूस के बीच टकराव टालना अब मुमकिन नहीं है?

क्या अमेरिका और रूस के बीच टकराव टालना अब मुमकिन नहीं है?

यूक्रेन के मामले में भी निश्चित तौर पर कुछ अहम इकोनॉमिक फैक्टर हैं. अर्थव्यवस्था के आकार के मामले में भले ही यूक्रेन कोई बड़ी ताकत नहीं हो, लेकिन तेल के खेल में वह बड़ी भूमिका निभा सकता है. ट्रेंडिंग इकोनॉमिक्स के आंकड़ों के अनुसार, यूक्रेन की जीडीपी का साइज महज 164 बिलियन डॉलर के आस-पास है. क्रूड ऑयल और नेचुरल गैस के अलावा रेयर अर्थ मिनरल्स के भंडार भी उसे महत्वपूर्ण बनाते हैं. इस बारे में दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एवं सामरिक मामलों के एक्सपर्ट डॉ सुधीर सिंह बताते हैं कि यूक्रेन डाइरेक्टली अमेरिका के आर्थिक हितों के लिए खास मायने नहीं रखता है.

यूक्रेन के रास्ते मध्य यूरोप को होने वाली गैस-तेल सप्लाई भी खतरे में पड़ सकती है. कच्चा तेल रूस की इकोनॉमी में सबसे ज्यादा योगदान देता है. अगर इसके ऊपर अमेरिका का पूरी तरह से नियंत्रण हो जाए तो वह आसानी से रूस को काबू कर सकता है. अभी रूस के कच्चा तेल और नेचुरल गैस के खरीदारों में यूरोपीय देश सबसे आगे हैं. इनकी सप्लाई करने वाले लगभग सारे मेजर पाइपलाइन यूक्रेन से होकर गुजरते हैं. अगर यूक्रेन अमेरिका के साथ रहता है तो ये पाइपलाइन भी अमेरिकी नियंत्रण में रहेंगे.  इससे अमेरिकी तेल के लिए नया बाजार भी खुल रहा है. अमेरिका और यूक्रेन के व्यापारिक संबंधों को देखें तो इसमें मेटल्स का हिस्सा काफी ज्यादा है.

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