इतिहासहोम

राजस्थान का रहस्यमयी गांव कुलधरा, जो 170 सालों है वीरान, रुहानी ताकतों का है कब्जा

दुनिया का सबसे बड़ा हॉन्टेड विलेज का अजब गजब इतिहास

आज बात एक ऐसे गांव की जो बीती कई सदियों से वीरान पड़ा है…वहां दिन के वक्त अगर कोई जाता भी है तो सिर्फ घूमने के लिए…कभी हवेलियों से गुलजार रहने वाला ये गांव अब खंडहर हो चुका है…रात के सन्नाटे में यहां लोगों को डर लगता है…कोई कहता है कि गांव से अजीबो-गरीब आवाजें आती हैं…तो कुछ लोगों का मानना है कि जो भी यहां रात में आया फिर वापस नहीं लौटा…तो क्या है राजस्थान के कुलधरा की कहानी, क्यों जैसलमेर का ये गांव वीरान हो गया…क्यों आज तक यहां से 45 किलोमीटर के दायरे में एक भी घर नहीं बस सका…ये सब बताएंगे तो आये देखते हैं कुलधरा के गांव का रहस्य…

राजस्थान…यानी वो धरा जिसने हिंदुस्तान को कई सूरमा दिए…जिन्होंने वीरता की कई इबारतें लिखीं…वहीं यहां शौर्य, स्वाभिमान और लोक संस्कृति के रंगों से सराबोर इस राजस्थान का कण-कण अपनी अलग कहानी लिए हुए है…इसी कड़ी से जुड़ा हुआ है स्वर्ण नगरी जैसलमेर का कुलधरा…जिसका अतीत आज पहेली बनकर रह गया है…कुलधरा एक ऐसा गांव जो विश्व के सबसे भयानक हॉन्टेड प्लेस में से एक है…जी हां यहां टूटे फूटे सैकड़ों घर हैं…दिनभर यहां कुलधरा गांव की कहानी और रोचकता से रूबरू होने सैकड़ों लोग आते हैं…लेकिन जैसी ही सूरज डूबता है…यहां सब इस गांव से कोसों दूर निकल जाते हैं…क्योंकि सूरज ढलते ही यहां पर रूहानी ताकतें जिंदा हो उठती हैं…

कुलधरा ये वहीं गांव है जिसे भूतों की काल्पनिक घटनाओं से जोड़कर हॉन्टेड विलेज नाम दिया गया है…आज हम इसी कुलधरा गांव के बारे में जानेंगे कि क्या था यहां का वास्तविक इतिहास जिसकी वजह से कुलधरा गांव जैसलमेर में विशेष महत्व रखता था…और क्या कारण रहे एक ही रात में कुलधरा जैसे 84 गांव खाली हो गए…ये कोई काल्पनिक बात नहीं है…घटना है जैसलमेर के रियासतकाल की…शौर्य और स्वाभिमान के प्रतीक जैसलमेर की एक ऐतिहासिक जाती पालीवाल जिन्होंने अपने आत्म स्वाभिमान के खातिर एक ही रात में जिले के 84 गांव छोड़ दिए थे…

 

दरअसल कुलधरा की कहानी जानने से पहले आपको राजस्थान के पाली जिले से संबंधित पालीवाल ब्राह्म्णों को जानना होगा…पालीवाल जाती पाली से अपने निर्वासन के बाद जब इधर उधर भटक रही थी…तब जैसलमेर रियासत के तत्कालीन महारावल ने उनकी कर्मशीलता और उनके हुनर को पहचानते हुए उनसे जैसलमेर में बसने की गुजारिश की…ताकि इन कर्मशील लोगों के हुनर को काम में लेते हुए यहां की बंजर मरु भूमि में भी धान की पैदावार को बढ़ावा दिलाया जा सके…तत्कालीन महाराज ने उन्हें यहां बसते समय ये भी वचन दिया था कि आप लोग जब तक चाहें जैसलमेर में रह सकते हैं…राज्य आपके बसने का पूरा प्रबंध भी करेगा और आपसे इस राज्य में किसी भी प्रकार का कोई कर या लगान नहीं लिया जाएगा…कहा जाता है कि तब के पालीवाल अपनी व्यापार कला और कुशाग्र बुद्धि के लिए प्रसिद्ध थे…लिहाजा तत्कालीन जैसलमेर के राजा ने उन्हें वहां पर रहने दिया था…कहा जाता है कि तब 45 किलोमीटर में 84 गांव में पालीवालों को बसाया गया था…

अब आप सोच रहे होंगे कि फिर ऐसा क्या हुआ कि एक ही रात में पालीवालों को अपनी बसी बसाई दुनिया छोड़नी पड़ी…तो वजह थी दीवान सालिम सिंह…जोकि महारावल मूलराय सिंह के राज्यकाल के सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक था…क्रूर शब्द उस व्यक्ति के लिए छोटा पड़ता था…कहा जाता था कि इस मरुभूमि में ना अकाल का कोई इलाज था और ना सालिम था…एक अय्याश और रंगीन मिजाज के इस दीवान की देन ही कही जा सकती है आज का कुलधरा सहित अन्य 83 उजड़े गांव…जिन्हें आज भी देखने आने वाले लोग हैरान निगाहों से देखते हैं…

दरअसल खाभा गांव के पालीवाल हरिजन की नभयौवना बेटी मृगी जो बेहद रूपवान थी…उसकी सुंदरता के चर्चे बहुत आगे निकल चुके थे…उसके रूप और सौंदर्य पर कामाशक्त होकर क्रूर दीवान सालिम सिंह ने उसे अपना बनाने के लिए कई लालच और प्रलोभन दिए लेकिन पालीवाल अपनी बेटी को इस तरह एक क्रूर व्यक्ति को सौंपने वाले नहीं थे…यही वजह थी कि पालीवालों द्वारा दृड़ रहते हुए अपने कुल की परंपराओं का निर्वहन करने और संस्कृति विरुद्ध संबंध नहीं किया…इसी जिद के चलते इस दीवान द्वारा पालीवालों पर बेजा कर लगा दिए गए ताकि वे इनसे बचने के लिए उस नवयौवना का संबंध उसके साथ कर दें…जबकि उस काल में महारावलों द्वारा पालीवालों को ये वचन दिया गया ता कि ब्राह्म्णों और कर्मशील होने के कारण उन पर जैसलमेर रियासत में कभी भी किसी प्रकार का कर नहीं लगाया गया…

जब संवत् 1880 की श्रावणी पूनम के दिन 84 गांव के पालीवालों ने काठोरी के ऐतिहासिक मंदिर में एकत्रित होकर एक ही लोटे से नमक मिला पानी पीकर ये संकल्प लिया कि वो अपनी जन्मभूमि, कर्मभूमि भले ही छोड़ दें लेकिन सालिम के अत्याचारों के आगे शीश नहीं झुकाएंगे…मतलब ना तो वह सालिम सिंह के लगाए करों को चुकाएंगे और ना ही उनकी हवस पूर्ति के लिए अपनी बहू-बेटियों को उसके महल में भेजेंगे…इसी संकल्प के साथ उन्होंने हमेशा के लिए जैसलमेर को अलविदा कह दिया…साथ ही उन पालीवालों ने जाते जाते श्राप दिया कि यहां पर कोई भी बस नहीं पाएगा…कोई भी निर्माण नहीं हो पाएगा…वहीं यहां पर रात के वक्त में कोई भी या तो आ नहीं पाएगा और सूर्य अस्त होने के बाद यहां आया व्यक्ति यहां के बंवर से निकल नहीं पाएगा…यानी वो कभी भी वापस लौटकर जा नहीं पाएगा…यहां के स्थानीय लोग कहते हैं कि यहां का हर एक खंडहर भूतों का डेरा बन चुका है…यहां पर शाम होते ही अजीब अजीब गतिविधियां होते देखी गई हैं…

84 उजड़े गांव आज भी गवाह हैं पालीवालों के संकल्प के जिसमें वो अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपनी मात-भूमि को सदा के लिए छोड़कर चल दिए और ऐसे चले की आज तक वापस नहीं लौटे… उस दिन ना तो कोई हाथ आगे बढ़ा उन्हें रोकने के लिए ना उनके कदम छिटके अपने घरों को छोड़ते हुए… अपनी मातृभूमि को स्वर्ग बनाने वाले ये कारीगर अपना सब कुछ छोड़कर अपना स्वाभिमान अपनी इज्जत और अपना वजूद बचाने के लिए चले गए…वे तो चले गए लेकिन इस मरुधरा को श्राप ग्रस्त कर गए…उनके साथ आसमान भी रोया था पर कोई आवाज ना आई जो उन्हें जाने से रोकती… उन्हें कहती की तुम इस मरुभूमि को स्वर्ग बनाने वाले कारीगर हो इस रेगिस्तान को श्राप मुक्त कर स्वर्ग बनाने वाले तुम ना जाओ… तुमने इस भूमि के भविष्य का निर्माण किया है…वे सब एक ही रात में अपना घर-बार खेत-खलिहान, अपनी बसी बसाई दुनिया छोड़ कर चले गए…

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