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अनोखा स्कूल, अनोखा हुनर, मध्य प्रदेश को यूं ही अजब-गजब नहीं कहा जाता है…अब इन बच्चों के टेलेंट को ही देख लीजिए…

मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में एक ऐसा अनोखा स्कूल हैं...जहां के बच्चे एक नहीं बल्कि दोनों हाथ से लिख सकते हैं वह भी एक साथ, लेकिन इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि दोनों हाथों से एक साथ न सिर्फ यह बच्चे लिखते हैं बल्कि एक साथ दोनों हाथों से अलग-अलग भाषाओं में लिख सकते हैं...यह संभवत देश का पहला ऐसा स्कूल है जहां बच्चे इस कला में महारत हासिल कर चुके हैं और एक दो नहीं बल्कि स्कूल का हर बच्चा ऐसा ही लिखता है...

किसी ने सही कहा है, अपने देश में टेलेंट की कमी नहीं है…बस जरूरत है उस जौहरी की जो उस खालीस हुनर को पहचान सके और तराश कर कोहीनूर बना दें…आज एक ऐसी ही खबर हम आपको दिखाने जा रहे हैं…जहां बच्चों का टेलेंट देखकर आप जितना खुश होंगे उतना ही आप हैरान भी होंगे…जो देखिए इन बच्चों के हुनर को…

मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में एक ऐसा अनोखा स्कूल हैं…जहां के बच्चे एक नहीं बल्कि दोनों हाथ से लिख सकते हैं वह भी एक साथ, लेकिन इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि दोनों हाथों से एक साथ न सिर्फ यह बच्चे लिखते हैं बल्कि एक साथ दोनों हाथों से अलग-अलग भाषाओं में लिख सकते हैं…यह संभवत देश का पहला ऐसा स्कूल है जहां बच्चे इस कला में महारत हासिल कर चुके हैं और एक दो नहीं बल्कि स्कूल का हर बच्चा ऐसा ही लिखता है…

 

सिंगरौली जिले के जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित है वीणा वादिनी पब्लिक स्कूल बुधेला और यह स्कूल कोई सामान्य स्कूल नहीं है बाहर से भले ही यह बिल्कुल सामान्य दिखता हो लेकिन इसके अंदर जो हो रहा है वह किसी करिश्मे या चमत्कार से कम नहीं है…यहां पढ़ने वाले सभी बच्चे दोनों हाथ से एक साथ लिखते हैं और अलग-अलग भाषाओं में भी, एक-दो नहीं बल्कि यहां पढ़ने वाले 100 से अधिक बच्चे इस कला में पारंगत हैं…यह संभवत देश का पहला स्कूल है जहां बच्चे इस करिश्माई तरीके से लिखते हैं…यह स्कूल 1999 में यहां के रहने वाले विरंगत शर्मा ने शुरू किया था…उन्हें यह सीख देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद से मिली…जिनके बारे में उन्होंने पढ़ रखा था कि वह दोनों हाथों से लिखते थे…इसी विद्या को आगे बढ़ाते हुए विरंगत जी ने सिंगरौली में स्कूल शुरू करके इसका प्रयोग किया और आज सभी बच्चे इस कला में पारंगत हो चुके हैं हालांकि मनोचिकित्सक इस मामले में वैज्ञानिक तर्क देते हैं उनका कहना है कि बच्चों के ब्रेन को जिस तरह से ढाला जाएगा वैसे ही वह काम करेगा..

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