देश की 15 वीं महामहिम द्रौपदी मुर्मू … आदिवासी नेता, छोटे गांव से सर्वोच्च संवैधानिक पद तक का ऐसे तय किया सफर
Desk : Bharat A To Z News

जिंदगी के सफर में कई ऐसे मुकाम आते हैं, जब उनसे उबरना आसान नहीं होता, लेकिन देश की 15 वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ये कमाल कर दिखाया. उनका छोटे से गांव से शुरू हुआ सफर आखिर देश के सबसे सर्वोच्च संवैधानिक पद की मंजिल पर पहुंचा. एक तरह से जीवन की मुख्य धारा से अक्सर कटे रहने वाले आदिवासी समुदाय की लड़कियों और महिलाओं के लिए उनकी ये जीत एक प्रेरणा है, एक उम्मीद है. उनकी जीत इतिहास की किताबों में वो सुनहरा पन्ना है, जो जीवन के झंझावतों से हार न मानने, जिंदगी से लड़ कर जीत जाने की कहानी बयां करता रहेगा. 64 साल की मुर्मू देश की पहली नागरिक और भारत की सशस्त्र बलों की सर्वोच्च कमांडर बनने वाली पहली आदिवासी और दूसरी महिला हैं. द्रौपदी मुर्मू ने साल 2022 के राष्ट्रपति चुनावों में कुल वोट के 64.03 फीसदी वोट हासिल किए. अपने प्रतिद्वंदी यशवंत सिन्हा के मुकाबले उन्हें कुल 6,76,803 वोट मिले हैं. तो हम आज यहां देश की इसी महामहिम की पांच खास बातों के बारे में जिक्र करेंगे, जो देश की आजादी के ऐतिहासिक 75वें वर्ष में पदभार ग्रहण कर रही हैं.
ऊपरबेड़ा की कॉलेज जाने वाली पहली आदिवासी लड़की
देश की महामहिम द्रौपदी ने बहुत कम उम्र में ही दूसरों के लिए मिसाल कायम करने का सिलसिला शुरू कर दिया था. साल 1958 में एक संथाल परिवार में ऊपरबेड़ा पंचायत के गांव ऊपरबेड़ा में उनका जन्म हुआ. ये गांव ओडिशा के पिछड़े मयूरभंज जिले में पड़ता है. ऊपरबेड़ा पंचायत के सात राजस्व वाले गांवों में से एक इस गांव की द्रौपदी जब कॉलेज पहुंची तो वह ऊपरबेड़ा गांव की पहली लड़की थी जो क़ॉलेज में दाखिला ले पाईं. इस युवा उम्र में ही एक तरह से वह संथाल आदिवासी और गांव की लड़कियों के लिए एक पथ प्रदर्शक बन कर उभरीं. उन्होंने भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज में दाखिला लिया. ये कॉलेज अब रामादेवी महिला विश्वविद्यालय के नाम से जाता जाता है. द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद वह इस कॉलेज की लड़कियों के लिए भी एक मिसाल बन गईं हैं. राजनीति में अपना करियर का आगाज करने से पहले, मुर्मू मयूरभंज के रायरंगपुर में श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर में एक शिक्षिका थीं, और बाद में उन्होंने ओडिशा सरकार के सिंचाई और बिजली विभाग में एक कनिष्ठ सहायक के तौर पर भी अपनी सेवाएं दीं.
सफल राजनीतिक करियर
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 1997 में रायरंगपुर नगर पंचायत का चुनाव जीता और एक पार्षद के तौर पर काम किया. वह साल 2000 और 2004 में ओडिशा विधानसभा में दो बार चुनी गईं. यहीं नहीं साल 2000 से 2004 तक मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बीजद-बीजेपी गठबंधन सरकार में मंत्री के तौर पर भी काम किया. उन्होंने राज्य सरकार में वाणिज्य और परिवहन और बाद में मत्स्य पालन और पशुपालन का पोर्टफोलियो बखूबी संभाला.ओडिशा की परिवहन मंत्री के तौर पर उन्हें राज्य के सभी 58 उपमंडलों में परिवहन कार्यालय स्थापित करने का श्रेय दिया जाता है. उन्होंने बीजेपी की अनुसूचित जनजाति मोर्चा के उपाध्यक्ष के रूप में भी काम किया.
जूझता रहा जीवन झंझावतों से उनका
सफल राजनीतिक जीवन के बाद भी व्यक्तिगत जीवन के मामले में द्रौपदी मुर्मू की किस्मत उनसे हमेशा ही रूठी रही. यह दौर उनके जीवन में उस वक्त आया, जब साल 2009 में उन्होंने मयूरभंज निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ा. इस चुनाव में वो बीजद और बीजेपी के रिश्ते टूटने की वजह से हार गईं. इसी वक्त उनके निजी जीवन में भी उथल-पुथल भरा दौर आया. इसके बाद उन्होंने अपने परिवार के तीन सबसे करीबी सदस्यों को हमेशा के लिए खो दिया. साल 2009 में अपने सबसे बड़े बेटे लक्ष्मण मुर्मू की मौत हो गई, तो साल 2013 में अपने छोटे बेटे सिप्पन मुर्मू भी नहीं रहे. साल 2014 में उनके पति श्याम चरण मुर्मू की भी मौत हो गई.
झारखंड की राज्यपाल रहने पर साफगोई के लिए मशहूर रहीं
द्रौपदी मुर्मू ने साल 2015 में झारखंड की पहली महिला राज्यपाल के रूप में शपथ ली थी. इस दौरान वह विपक्ष के बीच भी अपनी साफगोई और निष्पक्ष फैसलों के लिए मशहूर रहीं. नवंबर 2016 में, मुख्यमंत्री रघुबर दास के नेतृत्व वाली राज्य की बीजेपी सरकार ने दो सदियों पुराने भूमि कानूनों – छोटानागपुर काश्तकारी (सीएनटी) अधिनियम और संथाल परगना काश्तकारी (एसपीटी) अधिनियम में संशोधन पारित किया था. इससे औद्योगिक इस्तेमाल के लिए भूमि का आसानी से हस्तांतरण सुनिश्चित हो जाता. इस बिल पर वहां आदिवासियों ने भारी विरोध किया था. आदिवासियों का मानना था कि सरकार के इस कदम से भूमि पर उनके अधिकार सीमित हो जाएंगे. इस सबको ध्यान में रखथे हुए तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने जून 2017 में विधेयकों को वापस कर दिया. यहीं नहीं उन्होंने झारखंड सरकार से ये भी स्पष्ट करने के लिए कहा कि संशोधनों से आदिवासियों को कैसे फायदा होगा. उनका यह फैसला वास्तव में संवैधानिक पदों पर बैठे ऐसे लोगों के लिए नजीर बना जो पदों पर रहते हुए अपनी पार्टी के फैसलों पर उंगली उठाने की हिम्मत नहीं कर पाते. उन्होंने उस पार्टी की सरकार द्वारा पारित विवादास्पद विधेयकों पर अपनी सहमति देने से इंकार किया था, जिससे वह खुद जुड़ी थी. इस वजह से झारंखड के लोगों के बीच वह सम्मान और प्रशंसा की हकदार बनी.
दमदार महिला आदिवासी नेता
द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति निर्वाचित होने से ही मशहूर नहीं हुई हैं, वो पहले से ही सामाजिक सरोकारों को लेकर संजीदा रही हैं. खासकर आदिवासी महिला समुदाय को लेकर उनकी सोच बेहद साफ और सुलझी रही है. एक संथाल नेता के तौर पर वो अपने समुदाय और सामान्य तौर से महिलाओं के लिए एक प्रेरणादायक शख्सियत रही हैं. मुर्मू ने अक्सर उन मुद्दों पर ध्यान दिया है, जिनका आदिवासी अक्सर सामना करते हैं. 24 नवंबर साल 2018 को वित्तीय समावेशन पर एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में उनकी साफगोई ने सबका दिल जीत लिया. इस अवसर पर झारखंड की राज्यपाल मुर्मू ने कहा, “भले ही झारखंड राज्य सरकार (तब बीजेपी की अध्यक्षता में) और केंद्र आदिवासियों को बैंकिंग सेवाओं और अन्य योजनाओं के लाभ देने के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन एससी एसटी की हालत अभी भी “बेहद खराब” बनी हुई है.” इस दौरान मुर्मू ने आदिवासी भाषाओं और संस्कृति के साहित्य के अन्य भाषाओं में अनुवाद करने को भी कहा.