
हिंदुओं का महत्वपूर्ण कर्मकांड कोरोना के चलते टला अकाल मृत्यु की शिकार
आत्माओं के लिए भी प्रेतशिला पर्वत पर नहीं उड़ेगा सत्तू
लॉकडाउन की वजह से लगातार दूसरी बार पितृ पक्ष का मेला नहीं लगेगा।
नतीजतन पिंडदान भी नहीं होगा। गया शहर से महज 15 किलोमीटर दूर
प्रेतशिला पर्वत पर इस बार भी आत्माएं भूखी रहेंगी।
हिंदू धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता है और जब तक पुनर्जन्म या मोक्ष नहीं होता, आत्माएं भटकती हैं।
इनकी शांति और शुद्धि के लिए गया में पिंडदान किया जाता है, ताकि वे जन्म-मरण के फंदे से छूट जाएं।
पितृपक्ष मेले के दौरान पिंडदान करने वालों द्वारा उड़ाए गए सत्तू से पूरा प्रेतशिला सफेद हो जाता है।
मेले के समय यहां खासी चहल-पहल होती है। पंडा का कहना है कि ऐसा करने से
अकाल मृत्यु की शिकार हुई प्रेत आत्माओं को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है।
प्रेतशिला पर्वत के ऊपर भगवान ब्रह्मा का मंदिर है।
वहीं सिर के बाल के समान तीन लकीरें हैं।
यहां के ब्राह्मणों का कहना है कि यह पर्वत सोने का था,
लेकिन शाप की वजह से सब नष्ट हो गया। अब तीन लकीरें ही बची है।
पर्वत पर बनी उन्हीं तीनों लकीरों को सत्व, रज और तम के तीन गुणों
का प्रतीक मान कर पिंडदान किया जाता है और सत्तू भेंट किया जाता है।
फिर उसे पर्वत पर उड़ाया जाता है।