ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई थी सांची स्तूप की खोज, जानें क्या हैं मान्यताएं
ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई थी सांची स्तूप की खोज, जानें क्या हैं मान्यताएं

ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई थी सांची स्तूप की खोज, जानें क्या हैं मान्यताएं
इस ऐतिहासिक स्तूप का निर्माण मौर्य साम्राज्य के प्रसिद्ध शासक अशोक द्वारा तीसरी
शताब्दी ई.पू. में किया गया था। इसके केन्द्र में एक अर्धगोलाकार ईंट निर्मित ढांचा था,
जिसमें भगवान बुद्ध के कुछ अवशेष रखे थे। इसके शिखर पर स्मारक को दिये गये ऊंचे
सम्मान का प्रतीक रूपी एक छत्र था। इसका निर्माण कार्य सम्राट अशोक की पत्नी महादेवी सक्यकुमारी को सौपा था। जो विदिशा के व्यापारी की ही बेटी थी। सांची उनका जन्मस्थान और उनके और सम्राट अशोक के विवाह का स्थान भी था। यह प्रेम, शांति, विश्वास और साहस के प्रतीक हैं। इस स्तूप को पहले ईंटो से बनवाया गया था, जिसे शुंग काल के दौरान पत्थरो से ढंक दिया गया। इस स्तूप में तोरण द्वारो और कटघरों का निर्माण सातवाहन काल में किया गया था, जिन्हें सुंदर रंगो से रंगा गया था। माना जाता है की द्वार पर बनायी गयी कलाकृतियां और द्वारो के आकार को सातवाहन राजा सातकर्णी ने ही निर्धारित किया था। इसकी ऊंचाई लगभग 16.4 मीटर है और इसका व्यास 36.5 मीटर है। सांची के स्तूपों का निर्माण कई कालखंडों में हुआ जिसे ईसा पूर्व तीसरी सदी से बारहवीं सदी के मध्य में माना गया है। ईसा पूर्व 483 में जब गौतम बुद्ध ने देह त्याग किया तो उनके शरीर के अवशेषों पर अधिकार के लिए उनके अनुयायी राजा आपस में लडने-झगडने लगे। अंत में एक बौद्ध संत ने समझा-बुझाकर उनके शरीर के अवशेषों के हिस्सों को उनमें वितरित कर समाधान किया।सांची के स्तूप दूर से देखने में भले मामूली अर्द्धगोलाकार संरचनाएं लगती हैं, लेकिन इसकी भव्यता, विशिष्टता व बारीकियों का पता सांची आकर देखने पर ही लगता है।