कॉलेज की 9% लड़कियां करा रहीं अबॉर्शन:बच्चियों को गर्भनिरोधक की नहीं जानकारी, अनमैरिड महिलाओं को मिला 24 हफ्ते की प्रेग्नेंसी में गर्भपात का हक
Desk : Bharat A To Z News

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने 24 हफ्ते की गर्भवती अविवाहित महिला को अबॉर्शन की मंजूरी दी है। इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने महिला को इसकी इजाजत नहीं दी थी। हाई कोर्ट का कहना था कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी यानी एमटीपी एक्ट के तहत 20 से 24 हफ्ते के गर्भपात की इजाजत अविवाहित महिला को नहीं दी जाती। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवाहित महिलाओं की तरह अनमैरिड महिलाओं को भी अबॉर्शन का हक है। इससे एक बहस छिड़ गई।
24 हफ्ते की प्रेग्नेंसी में अबॉर्शन हो सकता है जानलेवा
दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल में गायनाकोलॉजिस्ट डॉक्टर माला श्रीवास्तव ने वुमन भास्कर को बताया कि 12 हफ्ते के बाद अबॉर्शन नहीं किया जा सकता। दरअसल इस दौरान गर्भ में बच्चा विकसित हो चुका होता है। अगर बच्चा एब्नॉर्मल हो तभी 24 हफ्ते में गर्भ गिराया जा सकता है। कानून भी इसकी इजाजत देता है। एब्नार्मल बेबी को 22 से 24 हफ्ते तक बिना इजाजत के अबॉर्ड कर सकते हैं।
24 हफ्ते में अबॉर्शन करने से मां की जान भी जा सकती है। महिला का अनियमित खून बह सकता है या इंफेक्शन तक हो सकता है।
इस समय बच्चा पूरा बन जाता है और कई बार जिंदा पैदा होता है। 24 हफ्ते में नॉर्मल या सिजेरियन डिलीवरी भी हो जाती है। बच्चा पैदा होते ही रोता भी है। यानी 24 हफ्ते में बच्चे का नहीं मारा जा सकता।
2021 में एमटीपी एक्ट में शामिल हुईं अविवाहित महिलाएं
सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रसून कुमार ने बताया कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) एक्ट 1971 में पारित किया गया। यह केवल मैरिड महिलाओं को अबॉर्शन की अनुमति देता था। इसमें 20 हफ्ते के गर्भ को खत्म करने का नियम था। लेकिन 2021 में इसमें संशोधन हुआ और अनमैरिड महिलाओं को भी शामिल किया गया।
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा 3 के स्पष्ट रूप से पति के बजाय पार्टनर शब्द का इस्तेमाल हुआ।
नए कानून में अब रेप पीड़िता, नाबालिग लड़की, गंभीर रूप से बीमार महिला समेत सभी महिलाओं को शामिल किया गया। अब रेप पीड़िता और अविकसित 24 हफ्ते के भ्रूण को अबॉर्ट किया जा सकता है। 24 हफ्ते से ज्यादा की प्रेग्नेंसी को खत्म करने के लिए कोर्ट में याचिका देनी पड़ती है। 20-24 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को खत्म करने के लिए मेडिकल कमेटी की सलाह ली जाती है।
लड़कियों में नहीं है जागरूकता
डॉक्टर माला श्रीवास्तव ने बताया कि लड़कियों के बीच कॉन्ट्रासेप्शन को लेकर जागरूकता नहीं है। कई लड़कियों को यह तक नहीं पता कि कॉन्ट्रासेप्टिव पिल लेते कैसे हैं। असुरक्षित यौन संबंध के कारण कई अनमैरिड लड़कियां अबॉर्शन के लिए आती हैं। इनमें ज्यादातर 6-7 हफ्ते की गर्भवती होती हैं। अक्सर लोगों को लगता है कि कंडोम सुरक्षित होते हैं लेकिन इनके 18% फेल होने के चांस रहते हैं। प्रेग्नेंसी से बचने का सबसे सुरक्षित तरीका गर्भनिरोधक गोलियां हैं जो 99% असरदार होती हैं।
इसके अलावा स्कूल के स्तर पर 13-14 साल की लड़कियों के बीच जागरूकता फैलाने की बहुत जरूरत है। इस स्तर पर ही गर्भनिरोधक के बारे में जागरूक किया जाए तो अनचाहे गर्भ से कुंवारी लड़कियां सुरक्षित रह सकती हैं।
महिला का अविवाहित होना ही सबसे बड़ी समस्या
समाजशास्त्री इम्तियाज अहमद ने बताया कि महिलाओं को कानून ने अधिकार तो दिए गए हैं लेकिन हर महिला की समस्या एक जैसी नहीं होती। इसके लिए कानून में बदलाव जरूरी हैं। मैरिड और अनमैरिड महिलाओं की समस्याएं अलग-अलग होती हैं।
समाज की नजरों में एक महिला का अविवाहित होना ही सबसे बड़ी समस्या है। हमारी सोसाइटी में ऐसी महिलाओं को स्वतंत्र पहचान नहीं मिलती। अगर वह अपनी शर्तों पर जीती हैं तो उन्हें अवारा कहा जाता है। अनमैरिड महिलाओं में प्रेग्नेंसी कोई नई बात नहीं है।
जमाने से ऐसा चला आ रहा है। पहले घर के अंदर ही बात को छुपा लिया जाता था, आज डॉक्टर से सलाह ली जाती है जिससे इसे छुपाना मुश्किल होता है। आजकल लिव-इन का भी चलन है। कानून की नजरों में यह लीगल है लेकिन समाज ने इसे आज भी स्वीकार नहीं किया है। इन रिश्ते में रहनी वाली महिलाओं को चरित्रहीन समझा जाता है।
लिव-इन में रह रही हैं तो प्रॉपर्टी का हक नहीं
2010 में सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता दी। सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रसून कुमार के अनुसार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में राइट टू लाइफ की श्रेणी में आता है। इसमें एक महिला को शादीशुदा की तरह ही हक दिए गए जैसे घरेलू हिंसा अधिनियम। लेकिन जिस तरह पत्नी को पति की प्रॉपर्टी पर हक मिलता है, वह लिव-इन में नहीं मिलता।
हालांकि प्रेग्नेंसी के मामले में पति की जगह पार्टनर का नाम चलता है या सिंगल मदर लिखा जाता है.