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खंडित हैं फिर भी यहां वंदित हैं शिव, कहा जाता है आदिवासियों का हरिद्वार,

खंडित हैं फिर भी यहां वंदित हैं शिव, कहा जाता है आदिवासियों का हरिद्वार,

खंडित हैं फिर भी यहां वंदित हैं शिव, कहा जाता है आदिवासियों का हरिद्वार,

प्रतापगढ़ जिले के अरनोद उपखंड क्षेत्र के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल और आदिवासियों का
हरिद्वार कहे जाने वाले गौतमेश्वर महादेव मंदिर में इस बार कोरोना का साया साफ तौर
पर देखने को मिला। कोरोना के असर को देखते हुए इस बार गौतमेश्वर महादेव मंदिर
में बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं को प्रवेश नहीं मिल पाया |

गौतमेश्वर महावेद मंदिर विश्वभर में इसलिए भी प्रसिद्ध हैं क्योंकि यह विश्व का एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां
खंडित शिवलिंग की पूजा की जाती है।इसके साथ ही यहां आने वाले श्रद्धालुओं को
अपने किए हुए पापों से मुक्ति के लिए भी प्रमाण पत्र भी दिया जाता है।

यहां आने वाले श्रद्धालुओं को अपने किए हुए पापों से मुक्ति के लिए भी प्रमाण पत्र भी दिया जाता है
हिन्दू धर्म शास्त्रों मे खंडित देव प्रतिमाओं, खंडित शिवलिंगों और तस्वीरों के पूजन को शुभ नहीं माना जाता है।
लेकिन जिले का गौतमेश्वर ऐसा शिवालय है,जहाँ गौतमेश्वर महादेव दो भागों में विभाजित हैं।

कहा जाता है कि सप्तऋषियों में से एक गौतम ऋषि पर लगा गौहत्या का कलंक भी यहीं स्नान करने
के बाद मिटा था।यहां ये किंवदंती प्रचलित है कि मोहम्मद गजनवी जब मंदिरों पर आक्रमण करते हुए यहां पहुंचा ,
तो उसने गौतमेश्वर महादेव शिवलिंग को भी खंडित करने का प्रयास किया। शिवलिंग पर प्रहार करने पर पहले तो शिवलिंग से दूध की धार निकली। दूसरे प्रहार पर उसमें से दही की धारा निकली और जब गजनवी ने तीसरा प्रहार किया तो शिवलिंग से आंधी की तरह मधुमक्खियों का झुंड निकला। इसने गजनवी सहित उसकी पूरी सेना को परास्त किया। इसके बाद यहां गजनवी ने शिवलिंग को शीश नवाया , साथ ही मंदिर का पुन: निर्माण करवाया । साथ ही एक शिलालेख भी लगाया। आज भी शिलालेख मंदिर में लगा हुआ है।

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